कल रात
छींटे दे-दे चेहरा भिंगोती रही चाँदनी
कल रात
पूरी पृथ्वी पर झुकता रहा आसमान
कल रात
चाँद होंठ टेढ़े करके ठीक वैसे ही
हँसा
जैसे मो ना लि सा
बहुत कुछ हुआ
और भी
बहुत कुछ हुआ कल रात !
कवि - अपूर्वानंद (1982 )
वाह! बहुत अच्छी कविता आपने पढवाई.
जवाब देंहटाएंआह!अति सुन्दर अभिव्यक्ति !
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