छलनी है अँधेरे का सीना, बरखा के भाले बरसे हैं
दीवारों के आँसू हैं रवाँ, घर ख़ामोशी में डूबे हैं
पानी में नहाये हैं बूटे,
गलियों में हू का फेरा है
शोपेन का नग़मा बजता है
शोपेन = Chopin, पोलैंड का प्रसिद्ध संगीतकार
शोपेन = Chopin, पोलैंड का प्रसिद्ध संगीतकार
इक ग़मगीं लड़की के चेहरे पर चाँद की ज़र्दी छाई है
जो बर्फ़ गिरी थी इस पे लहू के छीटों की रुशनाई है
खूँ का हर दाग़ दमकता है
शोपेन का नग़मा बजता है
कुछ आज़ादी के मतवाले, जाँ कफ़ पे लिये मैदाँ में गये
हर सू दुश्मन का नर्ग़ा था, कुछ बच निकले, कुछ खेत रहे
आलम में उनका शोहरा है
शोपेन का नग़मा बजता है
कफ़ = हथेली, नर्ग़ा = घेरा
इक कूँज को सखियाँ छोड़ गयीं आकाश की नीली राहों में
वो याद में तन्हा रोती थी, लिपटाये अपनी बाँहों में
इक शाहीं उस पर झपटा है
शोपेन का नग़मा बजता है
शाहीं = बाज़ की तरह का एक पक्षी
ग़म ने साँचे में ढाला है
इक बाप के पत्थर चेहरे को
मुर्दा बेटे के माथे को
इक माँ ने रोकर चूमा है
शोपेन का नग़मा बजता है
फिर फूलों की रुत लौट आई
और चाहने वालों की गर्दन में झूले डाले बाँहों ने
फिर झरने नाचे छन छन छन
अब बादल है न बरखा है
शोपेन का नग़मा बजता है
शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
संकलन - सारे सुख़न हमारे
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1987