कुछ-कुछ याद करते
जीवन रोज बीतता रहा
सब भुला नहीं सका
जो याद रहता है
उसी से कुछ भुला देता हूँ
जो भुला देता हूँ
उसमें से याद कर लेता हूँ
और अपने होने को
काम की तरह सोचता हूँ
सोमवार से इतवार तक
एक तारीख से इकतीस तारीख तक
अगर बत्तीस होगी तो भी l
कवि - विनोद कुमार शुक्ल
संकलन - कभी के बाद अभी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2012
जीवन रोज बीतता रहा
सब भुला नहीं सका
जो याद रहता है
उसी से कुछ भुला देता हूँ
जो भुला देता हूँ
उसमें से याद कर लेता हूँ
और अपने होने को
काम की तरह सोचता हूँ
सोमवार से इतवार तक
एक तारीख से इकतीस तारीख तक
अगर बत्तीस होगी तो भी l
कवि - विनोद कुमार शुक्ल
संकलन - कभी के बाद अभी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2012
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें