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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

हादसा (Hadsa by Amrita Pritam)

बरसों की आरी हँस रही थी
घटनाओं के दाँत नुकीले थे

अकस्मात् एक पाया टूटा
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया

आँखों में कंकड़ छितरा गये
और नज़र ज़ख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती होगी !

यित्री - अमृता प्रीतम
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983

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