दूर-दूर तक खूब घूमता
दिन-दिन-भर मैं तिरता फिरता
रस्ते-रस्ते
लेकिन घर पर लौट ढूँढ़ती आँखें तुमको
यदि न दिखीं तुम,
तुम !
मन बुझ जाता l
कवि - शंख घोष
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद - प्रयाग शुक्ल
संकलन - शंख घोष और शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1987
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