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बुधवार, 5 दिसंबर 2012

माशूक़ (Mashooq by Wali Dakani)


तेरा मुख मशरिक़ी हुस्न अनवरी जलवा जमाली है 
नैन जामी जबीं फ़िरदौसी व आबरू हिलाली है 
तू ही है खुसरुओ रौशन ज़मीरो-साएबो-शौकत 
तेरे अबरू ये मुझ बेदिल कूँ तुग़राए विसाली है 
वली तुझ क़द-ओ-अबरू का हुआ है शौक़ी-ओ-माएल 
तू हर इक बैत आली होर, हर इक मिसरा ख़याली है 


शायर - वली दकनी
किताब - उर्दू का आरम्भिक युग 
लेखक - शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2007

बकौल शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी इस "ग़ज़ल में उन्होंने 'माशूक़' की विशेषताएँ गिनाने में अपने पूर्ववर्ती कवियों के नाम अलंकृत रूप में खपाए हैं।" इस ग़ज़ल में आए कवि हैं - मशरिक़ी (मशहदी), अनवरी (अबीवर्दी), (शेख़) जमाली (कंबोह देहलवी), (अब्दुर्रहमान) जामी, फ़िरदौसी (तूसी), (शाह मुबारक) आबरू, हिलाली (चुग़ताई), (अमीर) खुसरो, (मीर हादी) रौशन, (मेरे रौशन) ज़मीर, साएब (तबरेज़ी), शौकत (बुखारी), (मिर्ज़ा) बेदिल, (मुल्ला) तुग़राविसाली (संभवतः देहलवी), (हसन) शौक़ी, (नवाब क़ुतुबुद्दीन) माइल (देहलवी), (नेमत खान) आली, ख़याली (काशी)


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