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शनिवार, 25 जून 2022

उन्हें हड़प लो (Poem by Bhuchung D. Sonam translated in Hindi)

आपकी प्लेट में रखा बटर चिकेन 

कल तक वह मुर्गी था 

जिसके चूजे अंडों से निकले नहीं अभी 

आप स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लीजिए 


पिछली गर्मियों [में] मैंने जिस ऊँट की सवारी की थी 

वह अब चमड़े का एक बैग बन चुका है 

सजा है एक आधुनिक शोरूम में 

कुबड़ा होना भी एक श्राप है 


उस पर बहुत फबता है मस्कारा 

पर उसकी आँखों तक आने से पहले 

वह कितने ही चूहों की आँखें फोड़ चुका होता है 

चूहे अब बिल्लियों से अधिक मसकारे से डरते हैं 


बुद्ध की प्राचीन मूर्ति की नकल 

उसके आलीशान स्नानगृह में खड़ी है 

जनमानस की सामूहिक आस्था का प्रतीक 

अब रोज़ उसे मूतते हुए घूरता है 


वह दहाड़ता हुआ गर्वीला बाघ 

जो बड़ी शान से बंगाल के जंगलों में 

चहलकदमी किया करता था 

अब तुम्हारी पोशाक का बॉर्डर है 

लेकिन 

उसे पहन कर भी तुम 

बस एक भीगा हुआ कुत्ता दिखते हो। 


तिब्बती कवि - भुचुंग डी. सोनम (जन्म 1972)

संग्रह - ल्हासा का लहू, निर्वासित तिब्बती कविता का प्रतिरोध 

संकल्पना एवं अनुवाद - अनुराधा सिंह 

प्रकाशन - वाणी प्रकाशन और रज़ा फ़ाउण्डेशन, प्रथम संस्करण, 2021 


निर्वासन में रह रहे तिब्बती कवि की यह बात कहाँ नहीं लागू होती है ! बस कवि से असहमति वहाँ है जहाँ हड़पनेवाले को भीगा हुआ कुत्ता कहा गया है क्योंकि यह कुत्ते के लिए अपमानजनक है। सवाल है कि सबको हड़पने-निगलने-मसलने में लगे हुओं को क्या कहा जाए !

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