प्यारी तेरो प्यारो आयो प्यारी
प्यारी बातें कर प्यारे को मनाइये ।
अनेक भाँतन कर प्यारे को रिझाइए
आली ऐसी प्यारो कहाँ घर बैठे पाइये ।।
लाइए समुझाइए कौन भाँतन
कर सुखदे बुलाइये ।
साह बहादुर तेरे रसबस भए
अनरस कर कर सौतन हँसाइये ।।
शायर - बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र
संग्रह - मुग़ल बादशाहों की हिन्दी कविता
संकलन एवं संपादन - मैनेजर पाण्डेय
प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, पहला संस्करण, 2016
यह अच्छा संकलन है। बस मुझे उलझन हो रही है हिज्जे को देखकर। कहीं 'पाइये' तो कहीं 'लाइए'। मुमकिन है कि मूल से हिन्दी में छपाई तक आते आते यह हुआ हो। अक्सर इतने हाथों से रचना गुज़रती है कि एकरूपता नहीं रह जाती है। हालाँकि हर जगह एकरूपता लाना या खोजना भी बहुत सही नहीं।
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