1. जीना कोई हँसी-खेल नहीं
तुम्हें पूरी गंभीरता से जीना चाहिए
उदाहरण के लिए, एक गिलहरी की तरह
मेरा मतलब है जीने
के आगे और ऊपर किसी चीज़ की उम्मीद के बग़ैर,
मेरा मतलब है जीना ही तुम्हारा पूरा काम होना
चाहिए
जीना कोई हँसी-खेल नहीं
तुम्हें इसे गंभीरता से लेना चाहिए,
इतना और इतनी हद तक कि
जैसे तुम्हारे हाथ
बँधे हों तुम्हारी पीठ के पीछे,
और तुम्हारी पीठ लगी हो दीवार
से
या फिर किसी प्रयोगशाला
में,
अपने सफ़ेद
कोट और सुरक्षा कवच में
तुम मर सकते हो लोगों के लिए -
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके चेहरे तुमने कभी नहीं देखे
हालाँकि तुम जानते
हो कि जीना
सबसे असल, सबसे सुंदर चीज़ है।
मेरा मतलब है तुम्हें
जीने को इतनी गंभीरता से लेना चाहिए
कि सत्तर की उम्र में भी, उदाहरण के लिए, तुम ज़ैतून के दरख़्त लगाओगे
अपने बच्चों
के लिए नहीं क़तई
बल्कि इसलिए कि हालाँकि
तुम डरते हो मृत्यु से तुम उसपर यक़ीन नहीं करते
क्योंकि जीना, मेरा मतलब है अधिक वज़नी ठहरता
है।
तुर्की कवि नाज़िम हिकमत (1902-1963)
स्रोत : /poets.org/poem/living
मूल संकलन : Poems of Nazim Hikmet
तुर्की से अंग्रेज़ी अनुवाद : Randy Blasing and Mutlu Konuk
प्रकाशन : Persea Books
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद : अपूर्वानंद
इस खूबसूरत कविता के एक अंश का अनुवाद करके थोड़ी देर पहले अपूर्व ने चंडीगढ़ से भेजा। यात्रा और दसियों काम के बाद देर रात इस कविता ने कितना सुकून दिया होगा, इसका अंदाजा लगा सकती हूँ। मारने-मरने, उजाड़ने की खबरों के बीच, रोज़ाना की आपाधापी, निराशा और उदासी के बीच यह ज़िंदगी में लौटने का न्यौता है।
और मुझे याद आई पटना के दिनों की। 1983-85 के दौरान कितनी बार हम कई दोस्त लोग रात-रात भर कविता-पोस्टर बनाया करते थे। अधिकतर प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रम के लिए। उन्हीं दिनों नाज़िम हिकमत, महमूद दरवेश, ब्रेख्त, नेरुदा, काजी नजरुल इस्लाम,मायकोव्स्की आदि के साहित्य से परिचय हुआ था। उस कतार में कवयित्रियाँ बाद में आईं। इस पर ध्यान भी काफी बाद में गया।
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