क्यों बोयी गयी है
हमारे खमीर में इतनी वहशत
कि हम इन्तजार भी नहीं कर सकते
फलसफों के पकने का
यहाँ क्यों उगती है
सिर्फ शक की नागफनी ही
दिलों के दरमियां
कौन बो देता है
हमारी जरखेज मिट्टी में
रोज एक नया जहर !
यकीन के अलबेले मौसम
तू मेरे शहर में क्यों नहीं आता !
संकलन : रात और विषकन्या
प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
दूसरा संस्करण , 2010
इस संकलन में कवि के नाम को छोड़कर शायद ही कहीं नुक़्ता लगाया गया है।
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