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सोमवार, 8 अप्रैल 2013

गान्धारी (Gandhari by Ajneya)


कितने प्रसन्न रहते आये हैं
युग-युग के धृतराष्ट्र, सोच कर
गान्धारी ने पट्टी बाँधी थी
होने को सुहागिन
     उन के अभाग की l
आह ! देख पाते वे -
मगर यही तो था उन का असली अन्धापन ! -
गान्धारी ने लगातार उन के अन्याय सहे जाने से
अत्याचारों के प्रति उन के
उदासीन स्वीकार भाव के
लगातार साक्षी होने से
अच्छा समझा था अन्धे हो जाना !

वह अन्धापन
नहीं वशंवद
पुरुष मात्र के अन्ध अहं का
उस का तिरस्कार है :
नारी की नकार मुद्रा
ज्वाला ढँकी हुई
यों अनबुझ l


कवि - अज्ञेय
संकलन - ऐसा कोई घर आपने देखा है
प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1986

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