टाट के पर्दे के पीछे से
एक बारह-तेरह साला चेहरा झाँका
वह चेहरा
बहार के पहले फूल की तरह ताजा था
और आँखें
पहली मोहब्बत की तरह शफ्फाक
लेकिन उसके हाथ में
तरकारी काटते रहने की लकीरें थीं
और उन लकीरों में
बर्तन माँजने की राख जमी थी
उसके हाथ
उसके चेहरे से बीस साल बड़े थे l
शायरा - परवीन शाकिर
संकलन - थोड़े से बच्चे और बाकी बच्चे
संपादक - डॉ. विनोदानन्द झा
प्रकाशक - किलकारी, बिहार बाल भवन, पटना, 2012
वह चेहरा
बहार के पहले फूल की तरह ताजा था
और आँखें
पहली मोहब्बत की तरह शफ्फाक
लेकिन उसके हाथ में
तरकारी काटते रहने की लकीरें थीं
और उन लकीरों में
बर्तन माँजने की राख जमी थी
उसके हाथ
उसके चेहरे से बीस साल बड़े थे l
शायरा - परवीन शाकिर
संकलन - थोड़े से बच्चे और बाकी बच्चे
संपादक - डॉ. विनोदानन्द झा
प्रकाशक - किलकारी, बिहार बाल भवन, पटना, 2012
is choti si kavita ne dil ko choo lia...
जवाब देंहटाएं