गुलशने-याद में गर आज दमे-बादे-सबा
फिर से चाहे तो गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
उम्रे-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
जैसे बेगाने से अब मिलते हो वैसे ही सही
आओ दो-चार घड़ी मेरे मुक़ाबिल बैठो
गरचे मिल बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बाद
अपना एहसासे-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
हमसुखन होंगे जो हम दोनों तो हर बात के बीच
अनकही बात का मौहूम-सा पर्दा होगा
कोई इक़रार न मैं याद दिलाऊँगा न तुम
कोई मज़्मून वफ़ा का न ज़फ़ा का होगा
गर्दे-अय्याम की तहरीर को धोने के लिए
तुम से गोया हों दमे-दीद जो मेरी पलकें
तुम जो चाहो वो सुनो
और जो न चाहो न सुनो
और जो हर्फ़ करें मुझ से गुरेज़ाँ आँखें
तुम जो चाहो तो कहो
और जो न चाहो न कहो
- लंदन, 1978
दमे-बादे-सबा = हवा का झोंका गुल-अफ़शाँ= फूल बिखराना
उम्रे-रफ़्ता = बीती हुई उम्र फ़रोज़ाँ = उज्ज्वल, रौशन
एहसासे-ज़ियाँ = खोने की अनुभूति हमसुखन = दूसरे से बात करते हुए
मौहूम = आशंकित, हल्का गर्दे-अय्याम = युग
तहरीर = लिखावट दमे-दीद= देखते समय
गुरेज़ाँ = बचते हुए
फिर से चाहे तो गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
उम्रे-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
जैसे बेगाने से अब मिलते हो वैसे ही सही
आओ दो-चार घड़ी मेरे मुक़ाबिल बैठो
गरचे मिल बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बाद
अपना एहसासे-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
हमसुखन होंगे जो हम दोनों तो हर बात के बीच
अनकही बात का मौहूम-सा पर्दा होगा
कोई इक़रार न मैं याद दिलाऊँगा न तुम
कोई मज़्मून वफ़ा का न ज़फ़ा का होगा
गर्दे-अय्याम की तहरीर को धोने के लिए
तुम से गोया हों दमे-दीद जो मेरी पलकें
तुम जो चाहो वो सुनो
और जो न चाहो न सुनो
और जो हर्फ़ करें मुझ से गुरेज़ाँ आँखें
तुम जो चाहो तो कहो
और जो न चाहो न कहो
- लंदन, 1978
दमे-बादे-सबा = हवा का झोंका गुल-अफ़शाँ= फूल बिखराना
उम्रे-रफ़्ता = बीती हुई उम्र फ़रोज़ाँ = उज्ज्वल, रौशन
एहसासे-ज़ियाँ = खोने की अनुभूति हमसुखन = दूसरे से बात करते हुए
मौहूम = आशंकित, हल्का गर्दे-अय्याम = युग
तहरीर = लिखावट दमे-दीद= देखते समय
गुरेज़ाँ = बचते हुए
शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
संकलन - सारे सुख़न हमारे
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1987
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