रंग के विशेषज्ञों को डर है
कि आगामी वर्षों में
कुछ रंगों की भारी कमी मुमकिन है l
उनका अकाल तक पड़ सकता है
अगर इसी रफ्तार से हम उन्हें नष्ट करते रहे :
जैसे लाल और हरा, जो या तो
आसमान की तरह नीले पड़ जाएँगे
या कोयले की तरह काले l
एहतियात ज़रूरी है
कि जहाँ भी वे मिलें
उन्हें यत्न से बचाया जाए :
लाल को चाहे रक्त कहें
चाहे हरे को हरियाली
वे केवल फर्क रंग हैं
दुश्मन रंग नहीं l
और दोनों ही को बचाना ज़रूरी है
एक दूसरे की ज़िंदगी के लिए l
कवि - कुँवर नारायण
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