मन मूरख मिट्टी का माधो, हर साँचे में ढल जाता है
इसको तुम क्या धोका दोगे, बात की बात बहल जाता है
जी की जी में रह जाती है, आया वक़्त ही ढल जाता है
ये तो बताओ, किसने कहा था काँटा दिल से निकल जाता है
क्यों करती है अन्धी क़िस्मत अपने भावें आनाकानी
जग के मुँह पर हँसी-कहानी देखके जी ही जल जाता है
झूठ-मूठ ही होंट खुले तो दिल ने जाना अमृत पाया
एक-इक मीठे बोल पे मूरख दो-दो हाथ उछल जाता है
जैसे बालक पा के खिलौना तोड़ दे उसको और फिर रोए
वैसे आशा के मिटने पर मेरा दिल भी मचल जाता है
सुध बिसरे पर हँसनेवालो, चाह की राह चलो तो जानो
ओछा पड़ता है हर दाँव जब ये जादू चल जाता है
अब तो साँस यूँ ही आते हैं, काँपते-काँपते कुछ ठहराव
जैसे रस्ता चलते शराबी गिरते-गिरते सँभल जाता है
जीवन-रेत की छान-पटक में सोच-सोच दिन-रैन गँवाए
बैरन वक़्त की हेराफेरी, पल आता है, पल जाता है
'मीराजी' दर्शन का लोभी, बिन बस्ती जोग का फेरा
देख के हर अनजानी सूरत पहला रंग बदल जाता है
शायर - मीराजी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
इसको तुम क्या धोका दोगे, बात की बात बहल जाता है
जी की जी में रह जाती है, आया वक़्त ही ढल जाता है
ये तो बताओ, किसने कहा था काँटा दिल से निकल जाता है
क्यों करती है अन्धी क़िस्मत अपने भावें आनाकानी
जग के मुँह पर हँसी-कहानी देखके जी ही जल जाता है
झूठ-मूठ ही होंट खुले तो दिल ने जाना अमृत पाया
एक-इक मीठे बोल पे मूरख दो-दो हाथ उछल जाता है
जैसे बालक पा के खिलौना तोड़ दे उसको और फिर रोए
वैसे आशा के मिटने पर मेरा दिल भी मचल जाता है
सुध बिसरे पर हँसनेवालो, चाह की राह चलो तो जानो
ओछा पड़ता है हर दाँव जब ये जादू चल जाता है
अब तो साँस यूँ ही आते हैं, काँपते-काँपते कुछ ठहराव
जैसे रस्ता चलते शराबी गिरते-गिरते सँभल जाता है
जीवन-रेत की छान-पटक में सोच-सोच दिन-रैन गँवाए
बैरन वक़्त की हेराफेरी, पल आता है, पल जाता है
'मीराजी' दर्शन का लोभी, बिन बस्ती जोग का फेरा
देख के हर अनजानी सूरत पहला रंग बदल जाता है
शायर - मीराजी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
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