बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
बादल, बिजली,रैन अँधियारी
दुख की मारी परजा सारी
बूढ़े - बच्चे सब दुखिया हैं
दुखिया नर हैं, दुखिया नारी
बस्ती - बस्ती लूट मची है
सब बनिये हैं, सब ब्यौपारी
बोल, अरी ओ धरती, बोल
कलयुग में जग के रखवाले
चाँदी वाले, सोने वाले
देसी हों या परदेसी हों
नीले, पीले, गोरे, काले
मक्खी,भुनगे भिन-भिन करते
ढूँढे हैं मकड़ी के जाले
बोल, अरी ओ धरती, बोल
नामी और मशहूर नहीं हम
लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम
धोका और मज़दूरों को दें !
ऐसे तो मजबूर नहीं हम
मंज़िल अपने पाँव के नीचे
मंज़िल से अब दूर नहीं हम
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
बादल, बिजली,रैन अँधियारी
दुख की मारी परजा सारी
बूढ़े - बच्चे सब दुखिया हैं
दुखिया नर हैं, दुखिया नारी
बस्ती - बस्ती लूट मची है
सब बनिये हैं, सब ब्यौपारी
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
कलयुग में जग के रखवाले
चाँदी वाले, सोने वाले
देसी हों या परदेसी हों
नीले, पीले, गोरे, काले
मक्खी,भुनगे भिन-भिन करते
ढूँढे हैं मकड़ी के जाले
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
क्या अफ़रंगी, क्या तातारी
आँख बची और बरछी मारी
कब तक जनता की बेचैनी
कब तक जनता की बेज़ारी
कब तक सरमाया के धंदे
कब तक ये सरमायादारी
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
नामी और मशहूर नहीं हम
लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम
धोका और मज़दूरों को दें !
ऐसे तो मजबूर नहीं हम
मंज़िल अपने पाँव के नीचे
मंज़िल से अब दूर नहीं हम
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
बोल कि तेरी ख़िदमत की है
बोल कि तेरा काम किया है
बोल कि तेरे फल खाए हैं
बोल कि तेरा दूध पिया है
बोल कि हमने हश्र उठाया
बोल कि हमसे हश्र उठा है
बोल कि हमसे जागी दुनिया
बोल कि हमसे जागी धरती
बोल, अरी ओ धरती, बोल
राजसिंहासन डाँवाडोल
- 1945
अफ़रंगी = फ़िरंगी सरमाया = पूँजी
सरमायादारी = पूँजीवाद हश्र = क़यामत
अफ़रंगी = फ़िरंगी सरमाया = पूँजी
सरमायादारी = पूँजीवाद हश्र = क़यामत
शायर - मजाज़ लखनवी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मजाज़ लखनवी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2001
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