Translate

रविवार, 21 अप्रैल 2013

चिड़ियाँ आएँगी

 
चिड़ियाँ आएँगी  
हमारा बचपन 
धूप की तरह अपने पंखों पर 
लिये हुए l 
 
किसी प्राचीन शताब्दी के 
अँधेरे सघन वन से 
उड़कर चिड़ियाँ आएँगी,
और साये की तरह 
हम पर पड़े अजब वक़्त के तिनके 
बीनकर बनाएँगी घोंसले l 
 
चिड़ियाँ लाएँगी   
पीछे छूट गए सपने,
पुरखों के क़िस्से,
भूले-बिसरे छन्द,
और सब कुछ 
हमारे बरामदे में छोड़कर 
उड़ जाएँगी l 
 
चिड़ियाँ न जाने कहाँ से आएँगी   
चिड़ियाँ न जाने कहाँ जाएँगी l 
नीम और अमरूद के वृक्षों की शाखाओं पर 
हरी पत्तियों, निबौलियों और गदराते फलों के बीच 
चिड़ियाँ समवेत गान की तरह 
हमारा बचपन हमारा जीवन 
हमारी मृत्यु 
सब एक साथ 
गाएँगी l 
 
चिड़ियाँ अनन्त हैं 
अनन्त से आएँगी 
अनन्त में जाएँगी l    
 
 
कवि - अशोक वाजपेयी (2003)
संग्रह - विवक्षा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2006

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें