मेरे गीतों को भी प्यार मिलेगा क्या !!
कलियाँ हो जाएँगी बासी,
जब तक आएगी पुनवाँसी !
पतझर के काँटों में फूल खिलेगा क्या !
काँटे जो लगते आए हैं,
लाल-गुलाबी दल लाए हैं !
इनसे पत्थर का भी मर्म छिलेगा क्या !
सूई भी है, डोरा भी है ;
शशि है, और चकोरा भी है !
टाँके पाकर मेरा घाव सिलेगा क्या !
- 1954
कलियाँ हो जाएँगी बासी,
जब तक आएगी पुनवाँसी !
पतझर के काँटों में फूल खिलेगा क्या !
काँटे जो लगते आए हैं,
लाल-गुलाबी दल लाए हैं !
इनसे पत्थर का भी मर्म छिलेगा क्या !
सूई भी है, डोरा भी है ;
शशि है, और चकोरा भी है !
टाँके पाकर मेरा घाव सिलेगा क्या !
- 1954
कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991
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