Translate

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

संख्या के बच्चे (Sankhya ke bachche by Shrikant Verma)



सच है ये शून्य हैं -
और तुम एक हो l
बड़े शक्तिशाली हो,
क्योंकि शून्य के पहले 
उसके दुर्भाग्य-से खड़े हो l
अपनी आकांक्षा के क़ुतुब बने सांख्य !
मत भूलो -
तुम भी आंकड़े हो l

मत भूलो -
तुम केवल एक हो
शून्य ही दहाई हैं, शून्य ही असंख्य हैं l
शून्य नहीं धब्बे हैं,
आंसू की बूंदों-से,
लोहू के कतरों-से, शून्य ये सच्चे हैं l
संख्या के बच्चे हैं l

शून्यों से मुंह फेर खड़े होने वाले !
शून्य अगर हट जाएं
ठूठे की अंगुली से केवल रह जाओगे l
मत भूलो -
शून्य शक्ति है, शून्य प्रजा है l


कवि - श्रीकांत वर्मा 
संग्रह - भटका मेघ
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली, 1983

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें