इस बीमारी का कोई इलाज नहीं, असाध्य सत्ता की व्याधि में
दवा-दारु बेकार है, सही-सही पथ्य या व्यायाम - किसी से भी
क्या कुछ भी होता है ! अनिद्रा के फन्दे में रात कटती है,
रक्त मचल-मचल उठता है, बेदम हो कर नाड़ी छूटने लगती है l
लाल आँखें नीले आकाश पर उदार प्रान्तर पर टिका दो
ऑफ़िस की गोपनीय फ़ाइलों में आँखों का इलाज नहीं है l
अगर खुले मैदान में पेशियों की ज़ंजीर खोल दोगे,
अगर स्नायु नित्य निःस्वार्थ विराट् में मुक्तिस्नान करेंगे,
अगर दिगन्त तक फ़ैली निर्मल हवा में अपने निश्वास छोड़ोगे,
तभी शरीर सुधरेगा, उच्च ताप घटेगा ; इस की दवाई
वैद्यों के हाथ में नहीं है l इस रोग का नुस्ख़ा है आकाश में,
धरती में, वनस्पति ओषधि में, खेत-मैदान-घास में,
पहाड़ में, नदी में, बाँध में, दृश्य जगत् के अनन्त प्रान्तर में,
प्रकृति में ह्रदय के सहज स्वस्थ स्वप्न में रूपान्तर में ;
इस की चिकित्सा है लोगों की भीड़ में, गन्दी बस्ती की झोंपड़ियों की
जनता में -
जनता में या धरती में, एक ही बात है, अन्योन्य सत्ता में ll
- 7.3.1959
कवि - विष्णु दे
संकलन - स्मृति सत्ता भविष्यत्
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद - भारतभूषण अग्रवाल
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1972
आपका चयन एक बार फिर दिल को छू गया.
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