सीधी है भाषा वसन्त की
कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पायी
कभी रोम रोम से
प्राणों में भर आयी
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नयी ज्योति छा गयी
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गयी
एक लहर फैली अनन्त की l
कवि - त्रिलोचन
संकलन - त्रिलोचन : प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - केदारनाथ सिंह
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1985
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें