यों मत छोड़ दो मुझे, सागर,
कहीं मुझे तोड़ दो, सागर,
कहीं मुझे तोड़ दो !
मेरी दीठ को और मेरे हिये को,
मेरी वासना को और मेरे मन को,
मेरे कर्म को और मेरे मर्म को,
मेरे चाहे को और मेरे जिये को
मुझ को और मुझ को और मुझ को
कहीं मुझ से जोड़ दो !
यों मत छोड़ दो मुझे, सागर,
यों मत छोड़ दो !
कवि - अज्ञेय
संकलन - सागर-मुद्रा (1967-1969 की कविताएँ)
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, कश्मीरी गेट, दिल्ली, 1970
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