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रविवार, 25 नवंबर 2012

पुराना दुख, नया दुख (Purana dukh, naya dukh by Shakti Chattopadhyay)



वह जो अपना एक दुख है पुराना 
क्या उससे आज कहूँ कि आओ 
और थोड़ी देर बैठो मेरे पास 

यहाँ मैं हूँ 
वहाँ, मेरी परछाईं 
कितना अच्छा हो कि इसी बीच वह भी आ जाय 
और बैठ जाय मेरी बगल में 

तब मैं अपने नये दुख से कहूँगा 
जाओ 
थोड़ी देर घूम-फिर आओ 
झुलसा दो कहीं कोई और हरियाली 
झकझोर दो किसी और वृक्ष के फूल और पत्ते 
हाँ, जब थक जाना 
तब लौट आना 
पर अभी तो जाओ 
बस थोड़ी-सी जगह दो मेरे पुराने दुख के लिए 
वह आया है न जाने कितने पेड़ों 
और घरों को फलाँगता हुआ 
वह आया है 
और बैठ जाना चाहता है बिल्कुल मुझसे सटकर 

बस उसे कुछ देर सुस्ताने दो 
पाने दो कुछ देर उसे साथ और सुकून 
ओ मेरे नये दुख 
बस थोड़ी-सी जगह दो 
थोड़ा-सा अवकाश 
जाओ 
जाओ 
फिर आ जाना बाद में l 


कवि - शक्ति चट्टोपाध्याय 
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद - केदारनाथ सिंह 
संकलन - शंख घोष और शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1987

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