Translate

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

दु:ख (Dukh by Ekant Shrivastav)


दु:ख वह है 
जो आँसुओं के सूख जाने के बाद भी 
रहता है
ढुलकता नहीं मगर मछली की आँख-सा
रहता है डबडब 

जो नदी की रेत में अचानक चमकता है 
चमकीले पत्थर की तरह 
जब हम उसे भूल चुके होते हैं 

दु:ख वह है 
जिसमें घुलकर 
उजली हो जाती है हमारी मुस्कान 

जिसमें भीगकर 
मज़बूत हो जाती हैं
हमारी जड़ें

कवि - एकान्त श्रीवास्तव 
संकलन - मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद 
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2000   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें