दु:ख वह है
जो आँसुओं के सूख जाने के बाद भी
रहता है
ढुलकता नहीं मगर मछली की आँख-सा
रहता है डबडब
जो नदी की रेत में अचानक चमकता है
चमकीले पत्थर की तरह
जब हम उसे भूल चुके होते हैं
दु:ख वह है
जिसमें घुलकर
उजली हो जाती है हमारी मुस्कान
जिसमें भीगकर
मज़बूत हो जाती हैं
हमारी जड़ें
कवि - एकान्त श्रीवास्तव
संकलन - मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2000
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