नदी के जल की
पहली किलकारी,
भोर की किरण का
पहला स्पर्श
और वृक्ष की शाखा पर फूटा
पहला किसलय …
कैसा लगा होगा यह सब
सृष्टि की पहली सुबह को ?
मुझे पता चला इसका,
जब अस्पताल के बेड पर
मैंने अपनी बिटिया की
पहली कंठ-गूंज सुनी,
उसके पतले नन्हें होंठ छुए
और उसे माँ की गोद में लिपटा हुआ
पद्मकोश-सा देखा …
कवि - नंदकिशोर नवल
संकलन - नील जल कुछ और भी धुल गया
संपादक - श्याम कश्यप
प्रकाशक - शिल्पायन, दिल्ली, 2012
पापा ने यह कविता मेरे जन्म के दो दिन बाद लिखी थी।
bahut badia kavita
जवाब देंहटाएंगुरुवर नवल जी को सदर नमन
जवाब देंहटाएंकोमल किसलय के अंत:में नन्ही कलिका सी आप पली होंगी यह सोचकर अभिभूत हुआ मन। धन्य पिता,धन्यतर पुत्री।
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