अलग भी हैं, लगे भी हैं !
उगा जो चाँद पूनम का,
समुन्दर का चलन चमका ;
चकोरों की न कुछ पूछो !
सजग भी हैं, ठगे भी हैं !
खुली पाँखें, लगी आँखें ;
बँधें, पर किसलिए माँखें ?
कमल के कोष में भौंरे
बिसुध भी हैं, जगे भी हैं !
कहें क्या, कौन होते हैं -
कि जिन बिन प्राण रोते हैं !
रुलाते हैं, हँसाते हैं !
पराये भी हैं, सगे भी हैं !
- 1974
कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991
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