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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

अलग भी हैं, लगे भी हैं ! (Alag bhi hain, lage bhi hain by Ramgopal Sharma 'Rudra')


अलग भी हैं, लगे भी हैं !

       उगा जो चाँद पूनम का,
       समुन्दर का चलन चमका ;
       चकोरों की न कुछ पूछो !
                 सजग भी हैं, ठगे भी हैं !

       खुली पाँखें, लगी आँखें ;
       बँधें, पर किसलिए माँखें ?
       कमल के कोष में भौंरे 
                बिसुध भी हैं, जगे भी हैं !

       कहें क्या, कौन होते हैं -
       कि जिन बिन प्राण रोते हैं !
       रुलाते हैं, हँसाते हैं !
                पराये भी हैं, सगे भी हैं !
                                          - 1974 


कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र 
संपादक - नंदकिशोर नवल 
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991

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