केरवा फरए घौंदसए ऊपर सुग्गा मंड़राय
मारवउ रे सुगवा धनुख सए सुगा खँसु मुरछाय
उजे केरवा जनु कोइ छुवय छठी माता ला
छठी माइ के जएतइन सनेस अरग देवय ला
उजे काँचए बाँस केर बंहिया रेशमक लागल डोर
भरिया होयतन कओन भइया भर लय पहुँचाय
बाटहिं पुछथिन बटोहिया भइया ई भार केकर जाय
आहे छठि अइसन ठकुराइन ई भार हुनकर जाय
नेमुआ फरए घौंदसए ऊपर सुग्गा मंड़राय
मारवउ रे सुगवा धनुख सए सुगा खँसु मुरछाय
उजे नेमुआ जनु कोइ छुवय छठी माता ला
छठी माइ के जएतइन सनेस अरग देवय ला
उजे काँचए बाँस केर बंहिया रेशमक लागल डोर
भरिया होयतन कओन भइया भर लय पहुँचाय
बाटहिं पुछथिन बटोहिया भइया ई भार केकर जाय
आहे छठि अइसन ठकुराइन ई भार हुनकर जाय
घौंद के घौंद केला फला है. उसे चखने के लिए सुग्गा मंडरा रहा है. रे सुग्गे, मैं तुम्हें तीर से मारूँगी और तुम्हें मूर्च्छा आ जाएगी. केले के घौंद को कोई नहीं छूये. वह छठी माँ के लिए सुरक्षित है. अर्घ्य देने के लिए वह छठी माँ को सौगात जायगा. काँच बाँस की बहँगी है और उसमें रेशम की डोर लगी है. मेरे अमुक भाई भरिया होंगे और छठी माँ को सौगात पहुँचायेंगे. रास्ते में पथिक पूछेंगे कि यह भार किसका है. तब मेरे अमुक भाई कहेंगे - "छठी-सी यशस्विनी हैं. उन्हीं का यह भार है." ...इसी तरह केला, नींबू आदि फलों का नाम लेकर गीत आगे बढ़ता है. गीत में बारी-बारी से भाइयों और बहनों का नाम लेते जाते हैं.
यह गीत तो मैथिली का है. इसको और इसके जैसे बीसियों गीत माँ बज्जिका में गाती थी. आज मेरा मन कर रहा था कि माँ से कहूँ कि फोन पर ही छठ का गीत सुना दो, लेकिन उसकी खाँसी सुनकर मैंने कहा नहीं.
संग्रह - मैथिली लोकगीत
संग्रहकर्ता और संपादक - राम इकबाल सिंह 'राकेश'
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
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