बैठकर ब्लेड से नाख़ून काटें,
बढ़ी हुई दाढ़ी में बालों के बीच की
ख़ाली जगह छाटें,
सर खुजलायें, जम्हुआयें,
कभी धूप में आयें,
कभी छाँह में जायें,
इधर-उधर लेटें,
हाथ पैर फैलायें,
करवट बदलें
दायें-बायें,
ख़ाली कागज़ पर कलम से
भोंड़ी नाक, गोल आँख, टेढ़े मुँह
की तसवीरें खींचें,
बार-बार आँख खोलें
बार-बार मींचें,
खाँसें, खखारें
थोड़ा-बहुत गुनगुनायें,
भोंड़ी आवाज़ में
अख़बार की ख़बरें गायें,
तरह-तरह की आवाज़
गले से निकालें,
अपनी हथेली की रेखाएँ
देखें-भालें,
गालियाँ दे-दे कर मक्खियाँ उड़ायें,
आँगन के कौओं को भाषण पिलायें,
कुत्ते के पिल्ले से हाल-चाल पूछें,
चित्रों में लड़कियों की बनायें मूंछें,
धूप पर राय दें, हवा की वकालत करें,
दुमड़-दुमड़ तकिये की जो कहिए हालत करें,
ख़ाली समय में भी बहुत-सा काम है
क़िस्मत में भला कहाँ लिखा आराम है l
बढ़ी हुई दाढ़ी में बालों के बीच की
ख़ाली जगह छाटें,
सर खुजलायें, जम्हुआयें,
कभी धूप में आयें,
कभी छाँह में जायें,
इधर-उधर लेटें,
हाथ पैर फैलायें,
करवट बदलें
दायें-बायें,
ख़ाली कागज़ पर कलम से
भोंड़ी नाक, गोल आँख, टेढ़े मुँह
की तसवीरें खींचें,
बार-बार आँख खोलें
बार-बार मींचें,
खाँसें, खखारें
थोड़ा-बहुत गुनगुनायें,
भोंड़ी आवाज़ में
अख़बार की ख़बरें गायें,
तरह-तरह की आवाज़
गले से निकालें,
अपनी हथेली की रेखाएँ
देखें-भालें,
गालियाँ दे-दे कर मक्खियाँ उड़ायें,
आँगन के कौओं को भाषण पिलायें,
कुत्ते के पिल्ले से हाल-चाल पूछें,
चित्रों में लड़कियों की बनायें मूंछें,
धूप पर राय दें, हवा की वकालत करें,
दुमड़-दुमड़ तकिये की जो कहिए हालत करें,
ख़ाली समय में भी बहुत-सा काम है
क़िस्मत में भला कहाँ लिखा आराम है l
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ-1
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978
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