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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

ख़ाली समय में (Khali samay mein by Sarveshvar Dayal Saxena)

बैठकर ब्लेड से नाख़ून काटें,
बढ़ी हुई दाढ़ी में बालों के बीच की 
ख़ाली जगह छाटें,
सर खुजलायें, जम्हुआयें,
कभी धूप में आयें,
कभी छाँह में जायें,
इधर-उधर लेटें,
हाथ पैर फैलायें,
करवट बदलें 
दायें-बायें,
ख़ाली कागज़ पर कलम से
भोंड़ी नाक, गोल आँख, टेढ़े मुँह 
की तसवीरें खींचें,
बार-बार आँख खोलें 
बार-बार मींचें,
खाँसें, खखारें 
थोड़ा-बहुत गुनगुनायें,
भोंड़ी आवाज़ में 
अख़बार की ख़बरें गायें,
तरह-तरह की आवाज़ 
गले से निकालें,
अपनी हथेली की रेखाएँ 
देखें-भालें,
गालियाँ दे-दे कर मक्खियाँ उड़ायें,
आँगन के कौओं को भाषण पिलायें,
कुत्ते के पिल्ले से हाल-चाल पूछें,
चित्रों में लड़कियों की बनायें मूंछें,
धूप पर राय दें, हवा की वकालत करें,
दुमड़-दुमड़ तकिये की जो कहिए हालत करें,

ख़ाली समय में भी बहुत-सा काम है 
क़िस्मत में भला कहाँ लिखा आराम है l 


कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ-1 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978


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