रात आधी हो गयी है !
जागता मैं आँख फाड़े,
हाय, सुधियों के सहारे,
जबकि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गयी है !
रात आधी हो गयी है !
सुन रहा हूँ, शान्ति इतनी,
है टपकती बूँद जितनी,
ओस की जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गयी !
रात आधी हो गयी है !
दे रही कितना दिलासा,
आ झरोखे से ज़रा-सा
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गयी है !
रात आधी हो गयी है !
कवि - हरिवंशराय बच्चन
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : हरिवंशराय बच्चन
संपादक - मोहन गुप्त
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1986
जागता मैं आँख फाड़े,
हाय, सुधियों के सहारे,
जबकि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गयी है !
रात आधी हो गयी है !
सुन रहा हूँ, शान्ति इतनी,
है टपकती बूँद जितनी,
ओस की जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गयी !
रात आधी हो गयी है !
दे रही कितना दिलासा,
आ झरोखे से ज़रा-सा
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गयी है !
रात आधी हो गयी है !
कवि - हरिवंशराय बच्चन
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : हरिवंशराय बच्चन
संपादक - मोहन गुप्त
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1986
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