मेरी बांबी से तुम ले गये
मेरी मणि हर कर l
मेरी -
अनुभूति खो गयी है
अनुभूति खो गयी है
अनुभूति खो गयी है
अनुभूति खो गयी है !
अर्थहीन मन्त्रों-सा पथ पर मैं फिरता हूं
अंधियारे की झाड़ी झुरमुट में
लटक,
अटक,
पत्थर पर फण पटक
रहता हूं l
मणि के बिना मैं अंधा, अपाहिज सांप हूं l
मेरी -
अनुभूति खो गयी है !
अनुभूति खो गयी है !!
शब्द मर गये हैं, आवाज़ मर गयी है l
डोल रहे शब्दहीन गीत हवा में जैसे
वंशी की बिछुड़पन में
प्राणों की राधा की लाज मर गयी है l
मेरी -
अनुभूति खो गयी है !
मणि बिन मैं अंधा हूं l
मणि बिन मैं गूंगा हूं
मणि बिन मैं सांप नहीं l
मणि बिन मैं मुर्दा हूं l
ठहरो, ठहरो, ठहरो,
मेरी बांबी मत रौंदो अपने पांवों से l
मुझमें अब भी विष है l
मेरा विष ही मणि बन मुझे पथ दिखायेगा l
मेरे विष की थैली
रत्ना, मणिगर्भा है l
मणि लेकर मुझसे, मुझ पर मत कौड़ी फेंको l
दूध का कटोरा मत मेरे आगे रक्खो l
विष को लग जाएगा दूध
ज़हर मेरा मर जाएगा l
मेरे फुफकारों की लहू की त्रिवेणी में
डूबेंगे तीर्थ सभी
चर्बी के पंडों के l
मेरे दंशन से ये सोने की मुंडेरें नीली पड़ जाएंगी -
तुमने मेरी मणि को
उल्लू की आंख बना रक्खा है l
लेकिन मेरे विष को कैसे पी पाओगे ?
मेरी ही केंचुल से मुझी को डराओगे ?
सम्हलो ! जिन सांपों को दूध पिलाया तुमने
मैं उनसे भिन्न हूं-
मैं अपनी मणि वापिस लेने को आया हूं l
मैं मणि का स्वामी हूं l
मैं मणि का स्रष्टा हूं l
मैं मणि का रक्षक हूं l
तक्षक हूं, तक्षक हूं l
मणि बिन मैं अंधा हूं l
मणि बिन मैं गूंगा हूं
मणि बिन मैं सांप नहीं l
मणि बिन मैं मुर्दा हूं l
ठहरो, ठहरो, ठहरो,
मेरी बांबी मत रौंदो अपने पांवों से l
मुझमें अब भी विष है l
मेरा विष ही मणि बन मुझे पथ दिखायेगा l
मेरे विष की थैली
रत्ना, मणिगर्भा है l
मणि लेकर मुझसे, मुझ पर मत कौड़ी फेंको l
दूध का कटोरा मत मेरे आगे रक्खो l
विष को लग जाएगा दूध
ज़हर मेरा मर जाएगा l
मेरे फुफकारों की लहू की त्रिवेणी में
डूबेंगे तीर्थ सभी
चर्बी के पंडों के l
मेरे दंशन से ये सोने की मुंडेरें नीली पड़ जाएंगी -
तुमने मेरी मणि को
उल्लू की आंख बना रक्खा है l
लेकिन मेरे विष को कैसे पी पाओगे ?
मेरी ही केंचुल से मुझी को डराओगे ?
सम्हलो ! जिन सांपों को दूध पिलाया तुमने
मैं उनसे भिन्न हूं-
मैं अपनी मणि वापिस लेने को आया हूं l
मैं मणि का स्वामी हूं l
मैं मणि का स्रष्टा हूं l
मैं मणि का रक्षक हूं l
तक्षक हूं, तक्षक हूं l
कवि - श्रीकांत वर्मा
संग्रह - भटका मेघ
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली, 1983
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