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रविवार, 28 अप्रैल 2013

बावला-बावली (Bavala-bavali bu Gijubhai)


एक था बावला, एक थी बावली l 
       दिन भर लकड़ी काटने के बाद थका-मादा बावला शाम को घर पहुंचा और उसने बावली से कहा, "बावली ! आज तो मैं थककर चूर-चूर हो गया हूं l अगर तुम मेरे लिए पानी गरम कर दो, तो मैं नहा लूं, गरम पानी से पैर सेक लूं और अपनी थकान उतार लूं l"
       बावली बोली, "वाह, यह तो मैं खुशी-खुशी कर दूंगी l देखो, वह हंडा पड़ा है l उसे उठा लाओ l"
       बावले ने हंडा उठाया और पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब पास के कुएं से इसमें पानी भर लाओ l"
       बावला पानी भरकर ले आया l फिर पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब हंडे को चूल्हे पर रख दो l"
       बावले ने हंडा चूल्हे पर रख लिया और पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "बस अब चूल्हा फूंकते रहो l"
       बावले ने फूंक-फूंककर चूल्हा जला लिया और पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब हंडा नीचे उतार लो l"
       बावले ने हंडा नीचे उतार लिया और पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब हंडे को नाली के पास रख लो l"
       बावले ने हंडा नाली के पास रख लिया और पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब जाओ और नहा लो l"
       बावला नहा लिया l उसने पूछा, "अब क्या करूं ?"
       बावली बोली, "अब हंडा हंडे की जगह पर रख दो l"
       बावले ने हंडा रख दिया और फिर अपने सारे बदन पर हाथ फेरता-फेरता वह बोला, "वाह, अब तो मेरा यह बदन फूल की तरह हल्का हो गया है l तुम रोज इस तरह पानी गरम कर दिया करो तो कितना अच्छा हो l"
       बावली बोली, "मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है l सोचो, इसमें आलस्य किसका है ?"
       बावला बोला, "हां, आलस्य तो मेरा ही है, पर अब मैं आलस्य नहीं करूंगा l"
       बावली बोली, "बहुत अच्छा ! तो अब तुम सो जाओ l"



लेखक - गिजुभाई बधेका 
रूपांतरकार - ओम प्रकाश 'सूरज'
संकलन - गिजुभाई की कहानियां 
प्रकाशक - नवसृजन साहित्य, दिल्ली, 2007


मुझे याद है कि इस कहानी को संस्कृत की पाठ्यपुस्तक (NCERT) में देने के लिए पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति में  कितना संघर्ष हुआ था ! उसमें बावला-बावली की जगह पेमला-पेमली था. 

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