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सोमवार, 10 जून 2013

लग्न-गीत (Maithili folksong)


पिपरक पात झलामलि हे 
बहि गेल तितल बतास 
ताहि तर कोण बाबा पलंगा ओछाओल 
बाबा क आयल सुख नींद हे 
चलइत-चलइत अइलि बेटी कोन बेटी 
खटिआ के पउआ धयले ठाढ़ि हे 
जाहि घर आहे बाबा धिआ हे कुमारि 
से ही कोना सुतथि निचिंत हे 
अतना बचनिया जब सुनलन्हि कोन बाबा 
घोड़ा चढ़ि भेला असवार हे 
चलि भेल मगह मुंगेर हे 
पुरूब खोजल बेटी पछिम खोजल 
खोजल में मगह मुंगेर हे 
तोहरा जुगुति बेटि वर नहिं भेटल 
खोजि अएलौं तपसि भिखार हे 
निरधन तपसिया हमें न बिआहव 
मरी जएवौं जहर चबाय हे 


पीपल के झिलमिल पत्ते हैं मंद-मंद शीतल हवा बह रही है . उस पीपल की ठंडी छाँह में अमुक पिता पलंग बिछा कर बैठा और ठंडी हवा के झोंके से गाढ़ी नींद में सो गया . यह देख कर अमुक बेटी वहाँ पलंग का डांड़ पकड़ कर खड़ी हुई और बोली - हे पिता, जिसके घर में कुँआरी कन्या है, भला वह किस तरह सुख की नींद सोयेगा ?'
यह सुन कर उसका पिता घोड़े पर सवार हुआ, और दूल्हा की तलाश में निकला . उसने पूरब ढूँढा, पछिम ढूँढा, मगध और मुंगेर भी ढूँढ डाला ;लेकिन उसकी कन्या के उपयुक्त वर नहीं मिला. 
अंत में उसने लौट कर अपनी कन्या से कहा - 'हे बेटी, तुम्हारे उपयुक्त आर नहीं मिला. अतः मैंने तुम्हारे लिए एक निर्धन वर तलाश किया है. 
कन्या ने कहा - 'हे पिता, निर्धन तपस्वी को मैं नहीं ब्याहूँगी . (निर्धन को ब्याहने के पूर्व ही) मैं गरल-पान कर मर जाऊँगी .'



संग्रह - मैथिली लोकगीत 
संग्रहकर्ता और संपादक - राम इकबाल सिंह 'राकेश' 
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग

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