खेत-खेत खाद खाय तपके तमाखू हुआ,
गया परदेस, कहो कैसी बुद्धिमत्ता है ?
विकट मेशीन बीच पड़ उड़वाया लत्ता,
बना सिगरेट, फिर लौटा कलकत्ता है !
हाट में बिकाया, आया हाथ में उसी के फिर
खाक भी हुआ, तो होठ ही पे ! क्या महत्ता है !!
'सत्ता' हुआ 'मिस' पे बेचारा कवी 'लोफ़र' भी
बोल उठा विश्व : यह प्रेम अलबत्ता है !
कवि - पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र (1900-1967)
संकलन - अपनी खबर
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1984
उग्रजी को मैंने छिटपुट ही पढ़ा था . आज जयपुर जाने और वहाँ से लौटने के सफर में मैंने उनकी आत्मकथात्मक 'अपनी खबर' पढ़ी . उनकी भाषा का भरपूर आनन्द मिला . उनकी बेबाकी, उनकी तुर्शी और उनके तेवर का कहना ही क्या ! बनारस से निकलनेवाले दैनिक अखबार 'आज' में प्रकाशित उनकी कुछ कविताएँ 'अपनी खबर' में दी गई हैं और उनमें से एक यह है.
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