तुम्हारी तोतली बोली,
तुम्हारा दूधिया दाँत,
तुम्हारा डगमगाते हुए चलना,
तुम्हारा 'पापा' कहना,
तुम्हारी बदमाशियाँ,
तुम्हारी बुद्धिमानियाँ ...
मुझे क्षण-भर नहीं भूलता है यह सब !
दिल में होता है,
मैं अभी टिकट कटाऊँ
और तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ l
पर तुम्हारे दूध के पैसे जुटाता तुम्हारा बाप
तुम तक पहुँच नहीं पाता है ;
क्षण-भर को मन भौंरे-सा उड़ता है,
फिर सरकारी फाइलों के कमल पर
बैठ जाता है l
-15.5.1966
कवि - नंदकिशोर नवल
संकलन - नील जल कुछ और भी धुल गया
संपादक - श्याम कश्यप
प्रकाशक - शिल्पायन, दिल्ली, 2012
पापा ने यह कविता भैया के लिए लिखी थी .
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