ज़िल्लेइलाही
शहंशाह-ए-हिन्दुस्तान
आफ़ताब-ए-वक़्त
हुज़ूर-ए-आला !
परवरदिगार
जहाँपनाह !
क्षमा करें मेरे पाप l
मगर ये सच है
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे
के हक़दार,
ये बिल्कुल सच है
कि अभी-अभी
आपको
बिल्कुल इनसानों जैसी
छींक आयी l
कवि - उदय प्रकाश
किताब - उदय प्रकाश : पचास कविताएँ, नयी सदी के लिए चयन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2012
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