वहाँ आँगन के कोने
में
प्यार ने सजाकर
रखा था एक पीढ़ा
छाया थी
माया थी
छाजन तले उगी थी
हरी-हरी घास
और धरती पर खुंदे थे
वर्षा की बूँदों के
गिरने के निशान
और ठीक वहीं
आँगन के उस कोने में
प्यार ने सजाकर रखा
था एक पीढ़ा
पर आया नहीं वह
जिसे आना था बैठने
आया नहीं जल्दी
आया नहीं धीरे-धीरे
आया नहीं वह
जिसे आना था
बैठने
रात धीरे-धीरे
होती गयी गहरी
रात धीरे-धीरे
होती गयी शेष
वहाँ
आँगन के उस कोने में
उसी तरह पड़ा रहा
खाली पीढ़ा
पर आया नहीं वह
जिसे आना था
बैठने l
कवि - शक्ति चट्टोपाध्याय
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद - केदारनाथ सिंह
संकलन - शंख घोष और शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1987
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