उन गन्नों में अभी भी एक बू बसी हुई है
खून और जिस्म का घोल,
एक पंखुरी बेधती, उबकाई आती है l
नारियल के दरख्तों के नीचे
कब्रें भरी हुई हैं तबाह हड्डियों और
ख़ामोश बेज़बान मौत की सरसराहटों से l
नाजुक तानाशाह बात कर रहा है
जहन्नुम से, सुनहरे फ़ीते और पट्टे लगाए
यह पिद्दी महल घड़ी की तरह चमकता है
और दस्ताने पहने तेज़ कहकहे
अक्सर गलियारे पार कर
मृत आवाज़ों
और ताज़े दफ़न नीले चेहरों में जा मिलते हैं l
वह रोना नहीं दिखाई देता, उस पौधे
की तरह जिसके बीज धरती पर
बेहिसाब गिरते जाते हैं
जिसकी बड़ी अंधी पत्तियाँ
बिना रोशनी के भी उगती बढ़ती जाती हैं l
एक एक क़दम करके नफ़रत बढ़ती है
चोट पर चोट करती
ख़ामोश चुचुआता थूथन लिए
इस दलदल के बदबूदार भयावह पानी में l
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नेरूदा का निधन 24.9.1973
कवि – अर्नेस्तो चे ग्वेरा (June 14, 1928 - October 9, 1967)
अनुवाद - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
किताब - धूप की लपेट
संकलन-संपादन - वीरेन्द्र जैन
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
किताब - धूप की लपेट
संकलन-संपादन - वीरेन्द्र जैन
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
(लातीनी अमेरिकी क्रांतिकारी ; जन्म आर्जेंतीना l क्यूबाई क्रांति को
सैद्धांतिक प्रेरणा दी और वहाँ की क्रांतिकारी सरकार में शामिल होने के बाद,
बोलिविया में छापामार कार्यवाही संगठित करने चले गए l वहीं गोली के शिकार बने l
अपनी मृत्यु के बाद सारे संसार में युवा क्रांतिकारियों के सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत
हैं l)
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