आहिस्ता मत चलो
दौड़ो l
अब कुछ भी सोचने का समय नहीं रहा l
अनाज से भरी मालगाड़ी
साँप-सी सिगनल पर खड़ी है
उसकी पूँछ पकड़कर
जोर से घुमाओ और पटक दो l
साहस और तेज गति -
बिना हथियारों के भी
इसी के सहारे तुम विषधर मारते रहे हो l
आहिस्ता मत चलो
दौड़ो l
ज्यादा सोचना भय को निमन्त्रण देना है
और धीरे चलना अवसर चूक जाना l
मैं जानता हूँ तुम्हारे हाथों में
अभी कोई झण्डा नहीं है,
भूखे और असहाय आदमी को
किसी झण्डे की जरूरत भी नहीं होती l
अपने उस साथी की
तार-तार फटी, खून से रँगी कमीज को
एक बाँस में लपेट ऊँचा उठा लो
जिसे कल अकेले वैगन लूटते समय
गोली मार दी गयी थी l
आहिस्ता मत चलो
दौड़ो l
सब एक साथ मिलकर
दौड़ो l
नहीं तो मालगाड़ी राजधानी पहुँच जायेगी
और लौटने पर तुम्हें अपनी झोंपड़ियों में
बच्चों और वृद्धों की लाशें ही मिलेंगी l
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - खूँटियों पर टँगे लोग
प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1982
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
जवाब देंहटाएंभारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra