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शनिवार, 14 सितंबर 2013

आहिस्ता मत चलो (Aahista mat chalo by Sarveshvar Dayal Saxena)

 
आहिस्ता मत चलो 
दौड़ो l 
 
अब कुछ भी सोचने का समय नहीं रहा l 
 
अनाज से भरी मालगाड़ी 
साँप-सी सिगनल पर खड़ी है 
उसकी पूँछ पकड़कर 
जोर से घुमाओ और पटक दो l 
 
साहस और तेज गति -
बिना हथियारों के भी 
इसी के सहारे तुम विषधर मारते रहे हो l 
 
आहिस्ता मत चलो
दौड़ो l 
 
ज्यादा सोचना भय को निमन्त्रण देना है 
और धीरे चलना अवसर चूक जाना l 
मैं जानता हूँ तुम्हारे हाथों में 
अभी कोई झण्डा नहीं है,
भूखे और असहाय आदमी को 
किसी झण्डे की जरूरत भी नहीं होती l 
अपने उस साथी की 
तार-तार फटी, खून से रँगी कमीज को 
एक बाँस में लपेट ऊँचा उठा लो 
जिसे कल अकेले वैगन लूटते समय 
गोली मार दी गयी थी l 
 
आहिस्ता मत चलो
दौड़ो l 
सब एक साथ मिलकर 
दौड़ो l 
 
नहीं तो मालगाड़ी राजधानी पहुँच जायेगी 
और लौटने पर तुम्हें अपनी झोंपड़ियों में 
बच्चों और वृद्धों की लाशें ही मिलेंगी l
 
 
 
 
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 
संकलन - खूँटियों पर टँगे लोग
प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1982

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
    भारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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