पढ़ा लिखा कुछ काम न आया
जीवन बीता चम्मच चम्मच
सोच विचार विमर्श त्याग कर
जीवन रीता चम्मच चम्मच
बालम ने बहकाया हमको
चूल्हे ने दहकाया हमको
निभी नौकरी लश्टम पश्टम
समय सारिणी भारी भरकम
खड़ी कतारें कर्तव्यों की
सुख और हक़ के लट्टू मद्धम
कब हम जीते कब हम हारे
कौन हिसाब रखे सरपंचम
अब हमने सिर तान लिया है
मन में निश्चय ठान लिया है
अपनी मर्ज़ी आप जियेंगे
जीवन की रसधार पियेंगे
कलश उठाकर, ओक लगाकर
नहीं चाहिए हमें कृपाएँ
करछुल करछुल चम्मच चम्मच l
कवयित्री - ममता कालिया
किताब - ममता कालिया : पचास कविताएँ, नयी सदी के लिए चयन प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2012
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