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सोमवार, 23 सितंबर 2013

चुटपुटिया बटन (Chutputiya button by Anamika)


मेरा भाई मुझे समझाकर कहता था – ‘जानती है, पूनम –
तारे हैं चुटपुटिया बटन
रात के अँगरखे में टंके हुए !’
मेरी तरफ ‘प्रेस’ बटन को
चुटपुटिया बटन कहा जाता था,
क्योंकि ‘चुट’ से केवल एक बार ‘पुट’ बजकर
एक-दूसरे में समा जाते थे वे l

वे तभी तक होते थे काम के
जब तक उनका साथी
चारों खूँटों से बराबर
उनके बिलकुल सामने रहे टंका हुआ !

ऊँच-नीच के दर्शन में उनका कोई विश्वास नहीं था !
बराबरी के वे कायल थे !
फँसते थे, न फँसाते थे-चुपचाप सट जाते थे l
मेरी तरफ प्रेस-बटन को चुटपुटिया बटन कहा जाता था,
लेकिन मेरी तरफ से लोग खुद भी थे
चुटपुटिया बटन
‘चुट’ से ‘पुट’ बजकर सट जाने वाले l

इस शहर में लेकिन ‘चुटपुटिया’ नजर ही नहीं आते –
सतपुतिया झिगुनी की तरह यहाँ एक सिरे से गायब हैं
चुटपुटिया जन और बटन l
ब्लाउज में भी दर्जी देते हैं टाँक यहाँ हुक ही हुक
हर हुक के आगे विराजमान होता है फँदा,
फँदे में फँसे हुए आपस में कितना सटेंगे –
कितना भी कीजिए जतन –
चुट से पुट नहीं ही बजेंगे !


कवयित्री - अनामिका
किताब - अनामिका : पचास कविताएँ, नयी सदी के लिए चयन  
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, 2012

 

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