ग़मे-ज़माना नहीं, इक अज़ाब है साक़ी
शराब ला, मिरी हालत ख़राब है साक़ी
शबाब के लिए तौबा अज़ाब है साक़ी
शराब ला, मुझे पासे-शबाब है साक़ी
उठा पियाला कि गुलशन पे फिर बरसने लगी
वो मै कि जिसका क़दह माहताब है साक़ी
निकाल पर्द-ए-मीना से दुख़्तरे-रज़ को
घटा में किसलिए ये माहताब है साक़ी
तू वाइज़ों की न सुन, मैकशों की ख़िदमत कर
गुनह सवाब की ख़ातिर सवाब है साक़ी
ज़माने भर के ग़मों को है दावते-ग़र्रा
कि एक जाम में सबका जवाब है साक़ी
कलाम जिसका है मेराजे-हाफ़िजो-ख़य्याम
यही वो अख़्तरे-ख़ानाख़राब है साक़ी
अज़ाब = मुसीबत
पासे-शबाब = जवानी का ख़याल
क़दह = शराब का घड़ा
पर्द-ए-मीना = शराब की सुराही के पर्दे से
दुख़्तरे-रज़ = अंगूर की बेटी यानी शराब
दावते-ग़र्रा = खुली दावत
मेराजे-हाफ़िजो-ख़य्याम = हाफ़िज़ और ख़य्याम नामक शायरों का पैमाना
अख़्तरे-ख़ानाख़राब = घर का बरबाद अख़्तर
शराब ला, मिरी हालत ख़राब है साक़ी
शबाब के लिए तौबा अज़ाब है साक़ी
शराब ला, मुझे पासे-शबाब है साक़ी
उठा पियाला कि गुलशन पे फिर बरसने लगी
वो मै कि जिसका क़दह माहताब है साक़ी
निकाल पर्द-ए-मीना से दुख़्तरे-रज़ को
घटा में किसलिए ये माहताब है साक़ी
तू वाइज़ों की न सुन, मैकशों की ख़िदमत कर
गुनह सवाब की ख़ातिर सवाब है साक़ी
ज़माने भर के ग़मों को है दावते-ग़र्रा
कि एक जाम में सबका जवाब है साक़ी
कलाम जिसका है मेराजे-हाफ़िजो-ख़य्याम
यही वो अख़्तरे-ख़ानाख़राब है साक़ी
अज़ाब = मुसीबत
पासे-शबाब = जवानी का ख़याल
क़दह = शराब का घड़ा
पर्द-ए-मीना = शराब की सुराही के पर्दे से
दुख़्तरे-रज़ = अंगूर की बेटी यानी शराब
दावते-ग़र्रा = खुली दावत
मेराजे-हाफ़िजो-ख़य्याम = हाफ़िज़ और ख़य्याम नामक शायरों का पैमाना
अख़्तरे-ख़ानाख़राब = घर का बरबाद अख़्तर
शायर - 'अख़्तर' शीरानी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'अख़्तर' शीरानी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2010
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