फूल खिलते ही रहे, कलियाँ चटकती ही रहीं
दिल धड़क जाए तो हासिल ? आँख भर आई तो क्या l
शाम सुलगाती चली आती है, ज़ख़्मों के चिराग़
कोई जाम आया तो क्या, कोई घटा छाई तो क्या l
काकुलें लहराईं, रातें महकीं, पैराहन उड़े
एक उनकी याद ऐसी थी, नहीं आई तो क्या l
दूरियाँ बढ़ती भी हैं, घटती भी हैं, मिटती भी हैं
साअतें आईं, यही साअत नहीं आई तो क्या l
साअतें = क्षण
शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2004
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