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गुरुवार, 19 सितंबर 2013

फूल खिलते ही रहे (Phool khilte hi rahe by Makhdoom Mohiuddin)

फूल खिलते ही रहे, कलियाँ चटकती ही रहीं 
दिल धड़क जाए तो हासिल ? आँख भर आई तो क्या l 

शाम सुलगाती चली आती है, ज़ख़्मों के चिराग़ 
कोई जाम आया तो क्या, कोई घटा छाई तो क्या l 

काकुलें लहराईं, रातें महकीं, पैराहन उड़े 
एक उनकी याद ऐसी थी, नहीं आई तो क्या l 

दूरियाँ बढ़ती भी हैं, घटती भी हैं, मिटती भी हैं 
साअतें आईं, यही साअत नहीं आई तो क्या l 


साअतें = क्षण 


शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2004

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