एक विकराल राक्षस की तरह
अपना भूखा मुँह खोले
हर रात बेड़ियाँ लोगों के पैर निगल लेती हैं
उनके जबड़े हर कैदी का दाहिना पैर दबोच लेते हैं
केवल बायाँ पैर
मुड़ने और फैलने के लिए मुक्त रह जाता है l
2
फिर भी एक अजीब बात इस दुनिया में है
लोग बेड़ियों में अपने पैर डालने के लिए दौड़ते हैं l
एक बार बेड़ी पड़ जाने पर
वे शांति से सो पाते हैं
अन्यथा सिर छुपाने की जगह भी
उन्हें नहीं मिलती
कवि – हो ची मिह्न (19. 5. 1890 - 2. 9. 1969)
अनुवाद - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
किताब - धूप की लपेट
संकलन-संपादन - वीरेन्द्र जैन
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
किताब - धूप की लपेट
संकलन-संपादन - वीरेन्द्र जैन
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें