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शनिवार, 26 अप्रैल 2014

कोशिश (Koshish by Kumar Ambuj)


कही जा सकती हैं बातें हज़ारों 
यह समय फिर भी न झलकेगा पूरा 
झाड़ झंखाड़ बहुत 
एक आदमी से न बुहारा जायेगा
इतना कूड़ा

क्या बुहारूँ 
क्या कहूँ, क्या न कहूँ ?
अच्छा है जितना झाड़ सकूँ, झाडूँ
जितना कह सकूँ, कहूँ

कम से कम चुप तो न रह सकूँ l


कवि - कुमार अंबुज
संकलन - अमीरी रेखा
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2011

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