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बुधवार, 16 अप्रैल 2014

यह अनंत अंत का दौर (Yah anant ant ka daur by Vinod Kumar Shukla)

यह अनंत अंत का दौर
आत्मसात के गाँव में 
आत्मसात का ठौर !

आत्मसात का बारबार 
अबकी बार, अगली बार 
इसबार 
हरबार का दौर 
हरबार के इस गाँव में 
हरबार का ठौर l 

मिलने और बिछड़ने के पहले 
बस इतना जीवन 
इस जीवन का और 
एक साथ के इस गाँव में 
एक साथ का ठौर l 


कवि -  विनोदकुमार शुक्ल
संकलन - अतिरिक्त नहीं
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000

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