यह अनंत अंत का दौर
आत्मसात के गाँव में
आत्मसात का ठौर !
आत्मसात का बारबार
अबकी बार, अगली बार
इसबार
हरबार का दौर
हरबार के इस गाँव में
हरबार का ठौर l
मिलने और बिछड़ने के पहले
बस इतना जीवन
इस जीवन का और
एक साथ के इस गाँव में
एक साथ का ठौर l
कवि - विनोदकुमार शुक्ल
संकलन - अतिरिक्त नहीं
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
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