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मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

सुनसान शहर (Sunsan shahar by Vijaydevnarayan Sahi)




मैं बरसों इस नगर की सड़कों पर आवारा फिरा हूँ 
वहाँ भी जहाँ 
शीशे की तरह 
सन्नाटा चटकता है 
और आसमान से मरी हुई बत्तखें गिरती हैं 






कवि - विजय देव नारायण साही
संकलन - मछलीघर
प्रथम संस्करण के प्रकाशक - भारती भण्डार, इलाहाबाद, 1966
दूसरे संस्करण के प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 1995

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