ख़्वाहिशें
लाल, पीली, हरी, चादरें ओढ़ कर
थरथराती, थिरकती हुई जाग उठीं
जाग उठी दिल की इन्दर सभा
दिल की नीलम परी, जाग उठी
दिल की पुखराज
लेती है अंगड़ाइयाँ जाम में
जाम में तेरे माथे का साया गिरा
घुल गया
चाँदनी घुल गई
तेरे होठों की लाली
तेरी नरमियाँ घुल गईं
रात की, अनकही, अनसुनी दास्तां
घुल गई जाम में
ख़्वाहिशें
लाल, पीली, हरी, चादरें ओढ़ कर
थरथराती, थिरकती हुई जाग उठीं l
शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2004
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें