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गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

सरकार ने कहा (Sarkar ne kaha by Prabhat Tripathi)

कुल्हड़ से चाय पीती आत्मा ने 
अनमनाकर देखी अपनी शक्ल
कोई धमाका नहीं हुआ,

नृशंस हत्याओं के समाचारोँ के बाद 
सीने तक आती खट्टी डकार के साथ 
उसने जाना पेट भरे होने का दुख 

उस वक्त एक आदमी दीवाल के किनारे 
पेशाब कर रहा था 
यह पेशाब करने का समय नहीं है 
सरकार ने कहा 
दूरदर्शन ने भूल-सुधार के लिए 
इलेक्ट्रॉनिक हरूफों में लिखा 
समय को जगह पढ़ें 
और आपस में खूब लड़ें l 

आखिर प्रकृति की सीख यही है 
और कविता की भी 
कि एक शब्द को दूसरे से लड़ाएँ 
और अपने-अपने प्रभु के गुन गाएँ 
गुनगाहक सिवा प्रभु के 
और कौन बचा है दुनिया में ?
कहने वाले ने 
अपने झोले को गौर से देखा 
और ताजा तुरई के स्वाद में डूबकर बोला 
इस देश का खुदा ही मालिक है l 

देश नहीं ; दुनिया कहिए हुजूर 
जाकिर हुसैन दूरदर्शन के परदे पर 
थपथपाए 

तबले के साथ बजती सारंगी का आविष्कार 
मुसलमान ने किया था या हिंदू ने 
इसका फैसला कोई अदालत नहीँ कर सकती 
हम करेंगे 
आधा दंगे के पहले 
और आधा 

जी नहीं, बहुत ज्यादा हो गई 
फिर मिलेंगे 
गर खुदा लाया




कवि - प्रभात त्रिपाठी 
संकलन - सड़क पर चुपचाप
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000

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