जिगर और दिल को बचाना भी है
नज़र आप ही से मिलाना भी है
मुहब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है
जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है
क़तीले-जफ़ा-ए-ज़माना भी है
ये बिजली चमकती है क्यों दम-ब-दम
चमन में कोई आशियाना भी है
ख़िरद की अताअत ज़रूरी सही
यही तो जुनूँ का जमाना भी है
न दुनिया न उक़बा, कहाँ जाइए
कहीं अह्ले-दिल का ठिकाना भी है
मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है
ज़माने से आगे तो बढ़िए 'मजाज़'
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है
क़तीले-जफ़ा-ए-ज़माना = ज़माने के सितम का मारा हुआ
दम-ब-दम = पल-पल
ख़िरद = बुद्धि
अताअत = अनुसरण
उक़बा = परलोक
साहिल = किनारा
नज़र आप ही से मिलाना भी है
मुहब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है
जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है
क़तीले-जफ़ा-ए-ज़माना भी है
ये बिजली चमकती है क्यों दम-ब-दम
चमन में कोई आशियाना भी है
ख़िरद की अताअत ज़रूरी सही
यही तो जुनूँ का जमाना भी है
न दुनिया न उक़बा, कहाँ जाइए
कहीं अह्ले-दिल का ठिकाना भी है
मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है
ज़माने से आगे तो बढ़िए 'मजाज़'
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है
क़तीले-जफ़ा-ए-ज़माना = ज़माने के सितम का मारा हुआ
दम-ब-दम = पल-पल
ख़िरद = बुद्धि
अताअत = अनुसरण
उक़बा = परलोक
साहिल = किनारा
शायर - मजाज़ लखनवी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मजाज़ लखनवी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2001
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