ख़यालिस्ताने-हस्ती में अगर ग़म है, ख़ुशी भी है
कभी आँखों में आँसू हैं, कभी लब पर हँसी भी है
इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
यूँ ही तकमील होगी हश्र तक तस्वीरे-हस्ती की
हरेक तकमील आख़िर में पयामे-नेस्ती भी है
ये वो सागर है, सहबा-ए-ख़ुदी से पुर नहीं होता
हमारे जामे-हस्ती में सरश्के-बेख़ुदी भी है
तकमील = पूर्ण
हश्र = क़यामत
तस्वीरे-हस्ती = जीवन के चित्र की
पयामे-नेस्ती = मृत्यु का संदेश
सहबा-ए-ख़ुदी = अहं की शराब
पुर नहीं होता = नहीं भरता
जामे-हस्ती = जीवन के प्याले में
सरश्के-बेख़ुदी = आत्मविस्मृति का आँसू
कभी आँखों में आँसू हैं, कभी लब पर हँसी भी है
इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
यूँ ही तकमील होगी हश्र तक तस्वीरे-हस्ती की
हरेक तकमील आख़िर में पयामे-नेस्ती भी है
ये वो सागर है, सहबा-ए-ख़ुदी से पुर नहीं होता
हमारे जामे-हस्ती में सरश्के-बेख़ुदी भी है
तकमील = पूर्ण
हश्र = क़यामत
तस्वीरे-हस्ती = जीवन के चित्र की
पयामे-नेस्ती = मृत्यु का संदेश
सहबा-ए-ख़ुदी = अहं की शराब
पुर नहीं होता = नहीं भरता
जामे-हस्ती = जीवन के प्याले में
सरश्के-बेख़ुदी = आत्मविस्मृति का आँसू
शायर - 'अख़्तर' शीरानी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'अख़्तर' शीरानी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2010
बहुत हि सुंदर , आदरणीय पूर्वा जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: मजेदार व काम की ८ एंड्राइड एप्लिकेशन डाउनलोड करें ! -{ 8 Free Android Apps Download ! }
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उम्दा
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